की मैं अनगढ़ लिपि बन जाऊँ! तुम्हारे अलावा कोई और न जाने मैं ऐसी काव्य निधि बन जाऊँ किसी ने सुनी नहीं अभी तक मैं उस कहानी सरीखी बन जाऊँ! प्रीत की गागर गदगद छलके उस धारा की मैं नदी बन जाऊँ! अपने खोल में बंद कर बना दूँ तुझे अनमोल मोती मैं वो सीपी बन जाऊँ! तेरे नैनों की भाषा की मैं अनगढ़ लिपि बन जाऊँ! तुम्हारे अलावा कोई और न जाने मैं ऐसी काव्य निधि बन जाऊँ किसी ने सुनी नहीं अभी तक मैं उस कहानी सरीखी बन जाऊँ!