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सुखनवर शायरी का सबब हुए हैं जो कल तक फकीर थे,रब हु

सुखनवर शायरी का सबब हुए हैं
जो कल तक फकीर थे,रब हुए हैं 

शुक्र है तिरंगा मिला सर झुकाने को
सर काटने को तो कई मजहब हुए हैं

मुझे मेरे मुल्क से गद्दार कह दो बेसक 
मियां हम खुद के भी सगे कब हुए हैं

रवायत है फतेह की बद्जुबां हो जाना
मुतमईन है सब पर छाले गजब हुए हैं #liberals
सुखनवर शायरी का सबब हुए हैं
जो कल तक फकीर थे,रब हुए हैं 

शुक्र है तिरंगा मिला सर झुकाने को
सर काटने को तो कई मजहब हुए हैं

मुझे मेरे मुल्क से गद्दार कह दो बेसक 
मियां हम खुद के भी सगे कब हुए हैं

रवायत है फतेह की बद्जुबां हो जाना
मुतमईन है सब पर छाले गजब हुए हैं #liberals