कवच और कुंडल पास में मेरे वो भी मैंने दान किए, पांच अमोघ बाण भी कुंती मां को दान किए,, कैसे कर्ज चुकता मैं दुर्योधन के अहसानों का सारा जग को जवाब एक था जाति गोत्र के तानों का अर्जुन के पास में थे केशव मैं मित्रता के साथ खड़ा था वो अर्जुन कर्ण युद्ध नही था कर्ण तो स्वमं कर्ण के साथ लड़ा था धर्मराज को दिया जीवन भीम का मान घटाया था नकुल सहदेव को इसलिए छोड़ा मेरा वचन सामने आया था, मैं वचन श्राप से बंधा हुआ था रथ का पहिया धसा हुआ था अर्जुन को मैं मरता कैसे कान्हा का चक्र रोक रहा था लेकिन मेरे बाणों के प्रसंशा में मुझे अर्जुन से श्रेष्ठ बोल रहा था मेरे युद्ध कला कौशल से कुरुक्षेत्र समूचा डोल रहा था,, ©##अनूप अंबर #कर्ण