विधिक और सार्वजनिक प्रावधानों के बावजूद हाल के वर्षों में गेट फैलाने वाले व्यक्तित्व का प्रचार किया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है खासकर इंटरनेट मीडिया की भूमिका इस के संदर्भ में बहुत महत्वपूर्ण है अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर हम कोई विचार अभिव्यक्त नहीं कर सकते हैं राम मनोहर लोहिया बेनाम बिहार राज्य 1965 मामले में उच्च न्यायालय की कानून व्यवस्था व्यवस्था और राज्य की सुरक्षा के उत्कृष्ट व्याख्या की है न्यायालय के अनुसार यह तीनों संकल्पना A3 मृत्यु का निर्माण करती है सबसे बड़ा कानून व्यवस्था का है जिसमें लोग व्यवस्था का दूसरा और उसके भीतर राज्य की सुरक्षा का तीसरा व्यक्ति है यदि और वैमनस्य का प्रचार हो तो लगभग तीनों ही प्रभावित होंगे हालांकि किसी व्यक्ति को फैलाने वाला व्यक्तित्व कहे जाने के पूर्व उसकी पहचान के कुछ आधारों को समझना आवश्यक है भारत के विविध आयोग ने 2017 में अपनी रिपोर्ट में उल्लेख किया आयोग के अनुसार कोई व्यक्ति आक्रमक और भावना से प्रेरित है ताकि आने वाले वक्त में रखा जाएगा इसी प्रकार यदि भारत की विधि आयोग 2017 में अपनी 267 भी रिपोर्ट में ऐसा कुछ आधारों का उल्लेख किया है आयोग के अनुसार कुछ बकता आजादी आक्रमण और चरम भावना से प्रेरित है तभी उसे झूठ फैलाने वाले व्यक्ति तक की श्रेणी में रखा जाएगा इसी प्रकार यदि ऐसा कोई व्यक्ति से हिंसा अभिप्रेरित हो तो उसे गिराने वाला वक्ता कहा जा सकता है ©Ek villain # अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमा #jail