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ये सितम भी ख़ूब है जो मुझ पर कहर बनकर बरसा, पूर




ये सितम भी ख़ूब है
जो मुझ पर कहर बनकर बरसा,
पूरा भिगा मे तन्हाइयों के मंज़र में,
ऐसे गिरा जिंदगी में, 
के ना कभी फिर से उठ पाया।

सोचा था क्या और हुआ क्या,
मांगा था क्या और मिला क्या,
जिंदगी में तेरा सहारा मांगा था,
मिला तो बस मुझे अकेलापन ही।

किस्मत पे भी मेरे,
काले बादलों का साया छाया, 
जो भी चाहा मैंने,
वही मेरे हाथों से फिसला। 

तन्हाईयों का कहर, 
मुझ पर ऐसे टूटा की, 
मैं खुद पल मे टूट कर बिखर गया, 
जिंदगी में हमेशा, 
तू रहती थी मेरी परछाई बनकर, 
लेकिन आज पीछे मुड़कर देखा तो, 
खुद को अकेला पाया। 

-Nitesh Prajapati 

— % & ♥️ Challenge-847 #collabwithकोराकाग़ज़

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ये सितम भी ख़ूब है
जो मुझ पर कहर बनकर बरसा,
पूरा भिगा मे तन्हाइयों के मंज़र में,
ऐसे गिरा जिंदगी में, 
के ना कभी फिर से उठ पाया।

सोचा था क्या और हुआ क्या,
मांगा था क्या और मिला क्या,
जिंदगी में तेरा सहारा मांगा था,
मिला तो बस मुझे अकेलापन ही।

किस्मत पे भी मेरे,
काले बादलों का साया छाया, 
जो भी चाहा मैंने,
वही मेरे हाथों से फिसला। 

तन्हाईयों का कहर, 
मुझ पर ऐसे टूटा की, 
मैं खुद पल मे टूट कर बिखर गया, 
जिंदगी में हमेशा, 
तू रहती थी मेरी परछाई बनकर, 
लेकिन आज पीछे मुड़कर देखा तो, 
खुद को अकेला पाया। 

-Nitesh Prajapati 

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