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दबे पाँव जिंदगी चलती रही , साँस इत्र -उत्र बिखरती

दबे पाँव जिंदगी चलती रही ,

साँस इत्र -उत्र बिखरती रही 


 स्याही  और कलम रेंगती रही 

 रात भर बाँट टटोलती रही ,

ना आह निकली ,ना कराह 

शब्दों के जंगल में ,

खाली पायल झुठा नर्तन करती रही । 


दबे पाँव जिंदगी चलती रही.…

©vandana Singh
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