मासूम सी नाजुक बच्ची, एक आँगन की कली थी वो। माँ बाप की आँख का तारा थी, अरमानो से पली थी वो।। जिसकी मासूम अदाओ से, माँ बाप का दिन बन जाता था। जिसकी एक मुस्कान के आगे, पत्थर भी मोम बन जाता था।। वो छोटी सी बच्ची थी, ढंग से बोल ना पाती थी। देख के जिसकी मासूमियत, उदासी मुस्कान बन जाती थी।। जिसने जीवन के केवल, पांच बसंत ही देख़े थे। उसपे ये अन्याय हुआ, ये कैसे विधि के लिखे थे।। एक पांच सालकी बच्ची पे, ये कैसा अत्याचार हुआ। एक बच्ची को बचा सके ना, कैसा मुल्क लाचार हुआ।। उस बच्ची पे जुल्म हुआ, वो कितनी रोई होगी। मेरा कलेजा फट जाता है,तो माँ कैसे सोयी होगी।। जिस मासूम को देखके मन में, प्यार उमड़ के आता है। देख उसी को मन में कुछ के, हैवान उत्तर क्यों आता है।। कपड़ो के कारण होते रेप, जो कहे उन्हें बतलाऊ मै। आखिर पांच साल की बच्ची कोा, साड़ी कैसे पहनाऊँ मै।। गर अब भी हम ना सुधरे तो, एक दिन ऐसा आएगा। इस देश को बेटी देने मे, भगवान भी जब घबराएगा।। सुनील कुमार 8502966427,9079391607 मासूम सी नाजुक बच्ची, एक आँगन की कली थी वो। माँ बाप की आँख का तारा थी, अरमानो से पली थी वो।। जिसकी मासूम अदाओ से, माँ बाप का दिन बन जाता था। जिसकी एक मुस्कान के आगे, पत्थर भी मोम बन जाता था।। वो छोटी सी बच्ची थी, ढंग से बोल ना पाती थी। देख के जिसकी मासूमियत, उदासी मुस्कान बन जाती थी।।