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क़ातिल हैं क़दम क़दम पर हर कोई अरमानों का, जायें भी

 क़ातिल हैं क़दम क़दम पर हर कोई अरमानों का,
जायें भी तो कहाँ जायें..!

कैसे दिए उनके सभी जख्मों को,
हम आख़िर कब तक फूल बतायें..!

छोड़ गए हैं वो नादाँ पंछी से दिल का पिंजरा,
फिर लौट कर न आए..!

नहीं फितरत हमारी उन,
पंछियों को क़ैद करना..!

जो रहकर हमारे दिल के पिंजरे में,
उड़ने की चाहत अपनाएं..!

जा रहे हैं जो छोड़ कर हमें बुरे वक़्त में,
किसी और के साथ वो खुशियों का घर बसाएं..!

जी लेंगे तन्हा यूँ ही हम भी,
न घायल पंछी से फड़फड़ाये..!

खुश रहने कि देते हैं दुआ उनको,
ख़ुद की खुशियों कि खातिर न कभी हम गिड़गिड़ाए..!

©SHIVA KANT
  #katilshayari