सक्षम सिंह राठौर हठ कर बैठा चांद 1 दिन माता से यह बोला सिलवा दो मां मुझे उनका मोटा एक दुगोला सर सर चलती हवा रात भर जाड़े से मैं मरता हूं ठिठुर ठिठुर कर किसी तरह से यात्रा पूरी करता हूं आसमान का सफर और यह मौसम है जाड़े का अगर ना हो तो ला दो कुर्ता भाड़े का कभी एक अंगूर भर छोटा कभी एक फुट मोटा घटता बढ़ता रोज किसी दिन हो जाता है छोटा