कुछ ख्वाइशें तो होंगी बारिशों की भी, वरना पहुंचकर ऊंचाइयों पर कौन जमीं पे आना चाहता है, यूँ ही धरती पे तो आते सभी हैं, और इन आंखों की नमी को कौन पढ़ पाता है, झूम उठते हैं, समझकर सावन जिसे मोरनी, खुदा चुपके से देखकर आँशु बहाता है..! इन आँखों की नमी को कौन पढ़ पाता है..! वत्सवाणी ©(अधूरी डायरी) #kr.Vats #Drops #kumarvats #vatsvani