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एक पल का साथ, पाकर भी मुस्कुराने लगे..! तुम्हें बन

एक पल का साथ,
पाकर भी मुस्कुराने लगे..!
तुम्हें बना कर ख़ुदा दिल का,
मोहब्बत में चाहने लगे..!

उदास रहते थे,
ख़ुद में तन्हा कभी..!
अब ख़्वाबों की बस्ती,
ख़्यालों में बसाने लगे..!

डुबाना चाहते थे पहले ख़ुद को,
ग़म के समुन्दर में..!
अब साथ जीने की आस में,
ख़ुद को बचाने लगे..!

चाहतों के गीत,
पँछी बन के चहचहाने लगे..!
खाली मकाँ से घर की ग़ज़ल,
सुरों के सारथी बन रचाने लगे..!

©SHIVA KANT(Shayar)
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