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शब-ए-बारात में होती है अल्लाह के रहमतों का नजूल ड

 शब-ए-बारात में होती है अल्लाह के रहमतों का नजूल

डेली5न्यूज- मधेपुरा ( मोहम्मद इसराफिल) 
 शब-ए-बारात को लेकर मुस्लिम धर्मावलम्बियों ने मस्जिदों, मदरसों, अपने घरों, दुकानों, प्रतिष्ठानों की साफ-सफाई के कार्य शुरु कर दिया है। कब्रिस्तानों में भी रोशनी की व्यवस्था को लेकर लोग लाइटिंग का काम जारी है। शब-ए-बारात मंगलवार को मनाया जाएगा। इसे लेकर हाट-बाजारों में रौनक बढ़ गई है। इस्लामी कैलेंडर के आठवीं महीने को शाबान कहा जाता है। और माहे शाबान के 15वीं की रात को शब-ए-बारात कहा जाता है। शब-ए-बारात का अर्थ है, एक बुलंदी रात। क्योंकि इस रात को अल्लाह पाक के दरबार में तौबा कबूल होती है। इस रात को अल्लाह की रहमतों व नेकियों के दरवाजे खुल जाते हैं। बरकतों का नजूल होता है और बंदों के खताएं (गुनाहे) बारगाहे इलाही में माफ किया जाता है। मजहबे इस्लाम में शाबान एक मुकददश महीना माना जाता है। इस महीना को हजरत मोहम्मद सलल्ललाहे अलैहे व सल्लत का महीना करार दिया गया है। मजहबे इस्लाम के पैगम्बार हजरत मोहम्मद (सल्ले) ने फरमाया है कि शब-ए-बारात की रात को जागा करो, और दिन में रोजा रखो। इस रात अल्लाह पाक अपने शान व शौकत के मुताबिक आसमान से दुनिया में रहमतों का नजूल फरमाता है और ऐलान करता है कि है कोई मगफीरत तलब करने वाला, है कोई रिज्क मांगने वाला, है कोई मुसीबत जदा इंसान ताकी मैं उसे निजात बखशूं। यह सिलसिला सुबह फजर तक जारी रहता है। इस रात को अल्लाह के जानीब से बंदों के लिए रोजी-रोटी, हयात-व-मौत व दिगर काम की सूची तैयार (फेहरिस्त) की जाती है। शब-ए-बारात की पूरी रात अल्लाह की इबादत में गुजारना बहुत बड़ी नेकी है। इस रात के पहले हिस्से में कब्रिस्तान जाकर पूर्वजों के कब्रो की जियारत करने और दूसरे हिस्से में कुरआन पाक को तिलावत, नफल व तहजूद की नमाज अदा कर रो-रो कर अल्लाह से अपनी गुनाहों की मगफीरत मांगने से अल्लाह बंदों की गुनाहों की बखशिश कर देते है।

इस रात में अल्लाह की इबादत व दिन में रोजा रखना अफजल माना गया है।
 शब-ए-बारात में होती है अल्लाह के रहमतों का नजूल

डेली5न्यूज- मधेपुरा ( मोहम्मद इसराफिल) 
 शब-ए-बारात को लेकर मुस्लिम धर्मावलम्बियों ने मस्जिदों, मदरसों, अपने घरों, दुकानों, प्रतिष्ठानों की साफ-सफाई के कार्य शुरु कर दिया है। कब्रिस्तानों में भी रोशनी की व्यवस्था को लेकर लोग लाइटिंग का काम जारी है। शब-ए-बारात मंगलवार को मनाया जाएगा। इसे लेकर हाट-बाजारों में रौनक बढ़ गई है। इस्लामी कैलेंडर के आठवीं महीने को शाबान कहा जाता है। और माहे शाबान के 15वीं की रात को शब-ए-बारात कहा जाता है। शब-ए-बारात का अर्थ है, एक बुलंदी रात। क्योंकि इस रात को अल्लाह पाक के दरबार में तौबा कबूल होती है। इस रात को अल्लाह की रहमतों व नेकियों के दरवाजे खुल जाते हैं। बरकतों का नजूल होता है और बंदों के खताएं (गुनाहे) बारगाहे इलाही में माफ किया जाता है। मजहबे इस्लाम में शाबान एक मुकददश महीना माना जाता है। इस महीना को हजरत मोहम्मद सलल्ललाहे अलैहे व सल्लत का महीना करार दिया गया है। मजहबे इस्लाम के पैगम्बार हजरत मोहम्मद (सल्ले) ने फरमाया है कि शब-ए-बारात की रात को जागा करो, और दिन में रोजा रखो। इस रात अल्लाह पाक अपने शान व शौकत के मुताबिक आसमान से दुनिया में रहमतों का नजूल फरमाता है और ऐलान करता है कि है कोई मगफीरत तलब करने वाला, है कोई रिज्क मांगने वाला, है कोई मुसीबत जदा इंसान ताकी मैं उसे निजात बखशूं। यह सिलसिला सुबह फजर तक जारी रहता है। इस रात को अल्लाह के जानीब से बंदों के लिए रोजी-रोटी, हयात-व-मौत व दिगर काम की सूची तैयार (फेहरिस्त) की जाती है। शब-ए-बारात की पूरी रात अल्लाह की इबादत में गुजारना बहुत बड़ी नेकी है। इस रात के पहले हिस्से में कब्रिस्तान जाकर पूर्वजों के कब्रो की जियारत करने और दूसरे हिस्से में कुरआन पाक को तिलावत, नफल व तहजूद की नमाज अदा कर रो-रो कर अल्लाह से अपनी गुनाहों की मगफीरत मांगने से अल्लाह बंदों की गुनाहों की बखशिश कर देते है।

इस रात में अल्लाह की इबादत व दिन में रोजा रखना अफजल माना गया है।
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शब-ए-बारात में होती है अल्लाह के रहमतों का नजूल डेली5न्यूज- मधेपुरा ( मोहम्मद इसराफिल)  शब-ए-बारात को लेकर मुस्लिम धर्मावलम्बियों ने मस्जिदों, मदरसों, अपने घरों, दुकानों, प्रतिष्ठानों की साफ-सफाई के कार्य शुरु कर दिया है। कब्रिस्तानों में भी रोशनी की व्यवस्था को लेकर लोग लाइटिंग का काम जारी है। शब-ए-बारात मंगलवार को मनाया जाएगा। इसे लेकर हाट-बाजारों में रौनक बढ़ गई है। इस्लामी कैलेंडर के आठवीं महीने को शाबान कहा जाता है। और माहे शाबान के 15वीं की रात को शब-ए-बारात कहा जाता है। शब-ए-बारात का अर्थ है, एक बुलंदी रात। क्योंकि इस रात को अल्लाह पाक के दरबार में तौबा कबूल होती है। इस रात को अल्लाह की रहमतों व नेकियों के दरवाजे खुल जाते हैं। बरकतों का नजूल होता है और बंदों के खताएं (गुनाहे) बारगाहे इलाही में माफ किया जाता है। मजहबे इस्लाम में शाबान एक मुकददश महीना माना जाता है। इस महीना को हजरत मोहम्मद सलल्ललाहे अलैहे व सल्लत का महीना करार दिया गया है। मजहबे इस्लाम के पैगम्बार हजरत मोहम्मद (सल्ले) ने फरमाया है कि शब-ए-बारात की रात को जागा करो, और दिन में रोजा रखो। इस रात अल्लाह पाक अपने शान व शौकत के मुताबिक आसमान से दुनिया में रहमतों का नजूल फरमाता है और ऐलान करता है कि है कोई मगफीरत तलब करने वाला, है कोई रिज्क मांगने वाला, है कोई मुसीबत जदा इंसान ताकी मैं उसे निजात बखशूं। यह सिलसिला सुबह फजर तक जारी रहता है। इस रात को अल्लाह के जानीब से बंदों के लिए रोजी-रोटी, हयात-व-मौत व दिगर काम की सूची तैयार (फेहरिस्त) की जाती है। शब-ए-बारात की पूरी रात अल्लाह की इबादत में गुजारना बहुत बड़ी नेकी है। इस रात के पहले हिस्से में कब्रिस्तान जाकर पूर्वजों के कब्रो की जियारत करने और दूसरे हिस्से में कुरआन पाक को तिलावत, नफल व तहजूद की नमाज अदा कर रो-रो कर अल्लाह से अपनी गुनाहों की मगफीरत मांगने से अल्लाह बंदों की गुनाहों की बखशिश कर देते है। इस रात में अल्लाह की इबादत व दिन में रोजा रखना अफजल माना गया है।