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तन्हा तन्हा सफ़र, यूँ सुख से बेख़बर..! चले थे मिलन

 तन्हा तन्हा सफ़र,
यूँ सुख से बेख़बर..!

चले थे मिलने गले इश्क़ से,
ख़्वाहिशें रहीं बे-असर..!

उड़ गए पँछी मुड़ गए कैसे,
ऐसे वैसे भी न हुआ बसर..!

स्वर्णिम शुक्तिजों की माला,
गई अकस्मात् यूँ कैसे बिखर..!

दफ़्न हो गए कफ्न की ख़ातिर,
जब मिलना था शिखर..!

घुट घुट कर जीते ग़म के आंसुओं को पीते,
कब तक करते रहते ज़िक्र..!

आशाओं की किरणें बुझ सी गई,
चिंता की चिता में करते करते फ़िक्र..!

©SHIVA KANT
  #tanha_safar