©'अल्प इस जालीनुमा खिड़की से रोज़ झाँका मेरी आँखें करती हैं ये नहीं भालती सड़क पर दौड़ती चमचमाती चार पहिया गाड़ी को नहीं देखती बाजारी शामों में लिपटी चकाचौंध को ये नहीं सुनती हंसी-फुहारो को. ये बस इन छोटे-छोटे स्क्वायरस को गिनती रहती हैं-गिनती रहती हैं-गिनती रहती हैं और हर रोज़ गिनती भूल जाया करती हैं. इन छोटे-छोटे स्क्वायरस में मुझे और भी छोटे-छोटे-छोटे-छोटे-छोटे-छोटे अनेकों छिद्र नज़र आते हैं जितनी ज्यादा गंभीरता से इन्हें देखती हूँ इनकी संख्या और अधिक बढ़ती जाती है. ये छोटे छिद्र मुझे समझाते हैं value of space. और दूसरे शब्दों में कहूँ तो बताते हैं ( where do I exist ) मैं कहाँ मौजूद हूँ ? हूँ भी कि नहीं और अगर हूँ तो कहाँ,..? मुझे अक्सर इनमें दिखा करती हैं आशाएं और सम्भावनाएं मैं तब तक इन्हें देखती रहती हूँ, जब तक मेरी आँखे थक नहीं जाती. ©'अल्प ______________________________________________________ A special thanks to all your lovely pokes. 🦋