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मेरी गली में मेरी गली में वो अंतिम वाले मकान के ब

मेरी गली में  मेरी गली में वो अंतिम वाले मकान के बाहर ही बैठा करती थी वो आमा। न जाने किस गली किस शहर से आई थी। हाँ वो माँ थी, दादी थी बहन थी, भाभी भी थी, मगर इन सबके बावजूद वो पागल वाली हालत में थी। उसके अपने बेटे ने उसे यूँ ही किसी भी बस में बैठा दिया न जाने क्या कहकर। और वो आमा चली आई थी कुछ निशानियां लेकर। सम्भालती थी उनको कभी दूर फेंक देती थी, फिर बड़बड़ाती और कुछ गलत सा बोलती थी। उर फिर प्यार से पूछकर कर उसे अपने सीने से लगा लेती थी। मैं देखती रहती सेऔर वो किसी शून्य में खोई रहती। और एक सुबह वो वहाँ नहीं थी, पता चला किसी और माँ के बेटे है उस माँ को फिर से बस में बिठा दिया ये सोचकर कि वो अपने शहर जाएगी तो कोई तो पहचानेगा उसे। मगर मैं सोचने लगी जिसने उसे जानबूझकर घर से निकला हो क्या वो अब भी पहचानेगा? या फिर किसी बस में बैठा देगा। 
©सखी #वोआमा #गली
मेरी गली में  मेरी गली में वो अंतिम वाले मकान के बाहर ही बैठा करती थी वो आमा। न जाने किस गली किस शहर से आई थी। हाँ वो माँ थी, दादी थी बहन थी, भाभी भी थी, मगर इन सबके बावजूद वो पागल वाली हालत में थी। उसके अपने बेटे ने उसे यूँ ही किसी भी बस में बैठा दिया न जाने क्या कहकर। और वो आमा चली आई थी कुछ निशानियां लेकर। सम्भालती थी उनको कभी दूर फेंक देती थी, फिर बड़बड़ाती और कुछ गलत सा बोलती थी। उर फिर प्यार से पूछकर कर उसे अपने सीने से लगा लेती थी। मैं देखती रहती सेऔर वो किसी शून्य में खोई रहती। और एक सुबह वो वहाँ नहीं थी, पता चला किसी और माँ के बेटे है उस माँ को फिर से बस में बिठा दिया ये सोचकर कि वो अपने शहर जाएगी तो कोई तो पहचानेगा उसे। मगर मैं सोचने लगी जिसने उसे जानबूझकर घर से निकला हो क्या वो अब भी पहचानेगा? या फिर किसी बस में बैठा देगा। 
©सखी #वोआमा #गली