वात्स्यायन का बाजारीकरण करके अश्लीलता फ़ैलाना बंद हो। यह मानसिक प्रदूषण समाज और सभ्य जीवनशैली में विकार है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ( पुरुषार्थों ) को समझे बिना जीवन को आहार, निद्रा,भय और मैथुन तक सीमित कर लेना ही सामाजिक अपराधों की जड़ है। अश्लीलता को लेकर अक़्सर कहीं न कहीं विवाद होते रहते हैं।समाज की सच्चाई दिखाने के नाम पर फिल्में, शार्ट स्टोरीज़,या सीरियल के साथ आज़कल वेबसीरीज का ख़ूब प्रदर्शन होता है। ज़्यादा पढ़े-लिखे लोग इसे रूढ़िवाद से बाहर निकलते समाज के तौर पर देखते हैं। "काम" को समझे बिना ही "कामुकता" का समर्थन कर हम समाज की मानसिकता के साथ बड़ा खिलवाड़ होते देख रहे हैं। सच तो ये है कि आधुनिकता के नाम पर हमने हर एक चीज़ का बाजारीकरण किया है। : #पाठकपुराण की ओर से #शुभसंध्या साथियो। "इरोटिका" लिखने वालों से या पढ़ने वालों से मुझे कोई आपत्ति नहीं हैं। बस बुरा लगता है जब ये किसी स्त्री की गरिमा को ठेस पहुंचाते दिखते हैं। आए दिन देश में आत्महत्या या हत्या जैसे अपराधों के आँकड़े बढ़ाने में इसका भी हाथ है। इस तरह के व्यक्तिगत विषय सार्वजनिक या सोशल मीडिया पर प्रदर्शित न हों इसके लिए कुछ तो प्रयास होना ही चाहिए। : आहार, निद्रा, भय और मैथुन तो पशु भी करते हैं। हम मनुष्य होने का दम्भ तो भरते हैं लेकिन ध्यान भूलते जा रहे हैं। : 🙏😊 किसी संभ्रांत आधुनिकतावादी को मेरी पोस्ट से ठेस पहुंची हो तो क्षमा चाहता हूँ। यह मेरा अपना निजी विचार है। :