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करना तय तुम भूल गए हद मेरे अपमान की! क्यों तुम तोड़

करना तय तुम भूल गए हद मेरे अपमान की!
क्यों तुम तोड़ रहे हो यूँ सरहद अभिमान की?

ममता समता गुरुता प्रभुता सब कुछ नारी है!
बेशर्म ज़रा सी शर्म करो लाज़रखो ईमान की।

आदिकाल से ही मेरा मन दंश झेलता आया है।
ख़्वाब - ख़यालों से मेरे पुरुष खेलता आया है।

मेरा ग़ुनाह है देह मेरी! या स्त्री होना गलती है!
जाने क्यों हिस्से में मेरे समझौता ही आया है?

जिसके हाथ में शक्ति है  मानव के निर्माण की।
नारी निर्माता भवति क्या तुमने ये पहचान की?

तुम हठ में बस खींच रहे ऐसे अपनी ओर मुझे!
या बात समझ में आई है अब मेरे सम्मान की। समझौता कहाँ तक
-------------------------
करना तय तुम भूल गए हद मेरे अपमान की!
क्यों तुम तोड़ रहे हो यूँ सरहद अभिमान की?

ममता समता गुरुता प्रभुता सब कुछ नारी है!
बेशर्म ज़रा सी शर्म करो लाज़रखो ईमान की।
करना तय तुम भूल गए हद मेरे अपमान की!
क्यों तुम तोड़ रहे हो यूँ सरहद अभिमान की?

ममता समता गुरुता प्रभुता सब कुछ नारी है!
बेशर्म ज़रा सी शर्म करो लाज़रखो ईमान की।

आदिकाल से ही मेरा मन दंश झेलता आया है।
ख़्वाब - ख़यालों से मेरे पुरुष खेलता आया है।

मेरा ग़ुनाह है देह मेरी! या स्त्री होना गलती है!
जाने क्यों हिस्से में मेरे समझौता ही आया है?

जिसके हाथ में शक्ति है  मानव के निर्माण की।
नारी निर्माता भवति क्या तुमने ये पहचान की?

तुम हठ में बस खींच रहे ऐसे अपनी ओर मुझे!
या बात समझ में आई है अब मेरे सम्मान की। समझौता कहाँ तक
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करना तय तुम भूल गए हद मेरे अपमान की!
क्यों तुम तोड़ रहे हो यूँ सरहद अभिमान की?

ममता समता गुरुता प्रभुता सब कुछ नारी है!
बेशर्म ज़रा सी शर्म करो लाज़रखो ईमान की।