किताबों की जगह बदलते बदलते ख़ुद कब बदल गए पता नहीं चला ।। वक़्त के उस दौर से आगे कब निकल गए पता न चला ।। करते थे रश्क़ किताबों पर दूसरों के नामों से । ख़ुद कब उसमें शुमार होने लगे पता न चला।। ©Afzal Mushtaq #Books शुमार