गनीमत है कि वो दूकान लिए फिरते हैं बहुत से लोग तो ईमान लिए फिरते हैं, हमारे शहर में जितने जवान लडके हैं इश्क में दिल लहूलुहान लिए फिरते हैं, इसी हथेली पर लिखा था तेरा नाम कभी इसी हथेली पर हम जान लिए फिरते हैं, जरा सा वजन क्या पड़ा जमीं पे बैठ गए लोग तो सर पे आसमान लिए फिरते हैं, जिन्होंने आग लगाई है मेरी बस्ती में वही बुझाने का सामान लिए फिरते हैं।। @अतुल कन्नौजवी From my ghazal book.