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कोरा काग़ज़ विशेष प्रतियोगिता-25 विषय :- दौलत का नशा

कोरा काग़ज़ विशेष प्रतियोगिता-25
विषय :- दौलत का नशा

दौलत का नशा होता है जिसको, 
इंसानियत वो सारी भूल जाता है।
इतने रंग बदलता है वो हर पल,
कि अपनों से दूर हो जाता है।

जब तक दौलत होती है पास,
उसके चेहरे में चमक होती है।
जब दौलत से हो जाती है दूरी,
तो वो टूटकर बिखर जाता है।

दौलत का नशा जब चढ़ता है,
तो घमंड सर चढ़कर बोलता है।
और दौलत का नशा उतरते ही,
सारा घमंड चूर-चूर हो जाता है।

दौलत का नशा मत करना कभी,
इंसान इंसान से दूर हो जाता है।
इंसानियत सारी खत्म हो जाती है,
क्यूँ इतना मगरूर हो जाता है।

दौलत की ख़ातिर इस दुनिया में,
जिसने अपनों को है ठुकराया।
मिलता नहीं अपनों का साथ उसे,
फिर अकेला ही वो रह जाता है। कोरा काग़ज़ विशेष प्रतियोगिता-25
विषय :- दौलत का नशा

दौलत का नशा होता है जिसको, 
इंसानियत वो सारी भूल जाता है।
इतने रंग बदलता है वो हर पल,
कि अपनों से दूर हो जाता है।
कोरा काग़ज़ विशेष प्रतियोगिता-25
विषय :- दौलत का नशा

दौलत का नशा होता है जिसको, 
इंसानियत वो सारी भूल जाता है।
इतने रंग बदलता है वो हर पल,
कि अपनों से दूर हो जाता है।

जब तक दौलत होती है पास,
उसके चेहरे में चमक होती है।
जब दौलत से हो जाती है दूरी,
तो वो टूटकर बिखर जाता है।

दौलत का नशा जब चढ़ता है,
तो घमंड सर चढ़कर बोलता है।
और दौलत का नशा उतरते ही,
सारा घमंड चूर-चूर हो जाता है।

दौलत का नशा मत करना कभी,
इंसान इंसान से दूर हो जाता है।
इंसानियत सारी खत्म हो जाती है,
क्यूँ इतना मगरूर हो जाता है।

दौलत की ख़ातिर इस दुनिया में,
जिसने अपनों को है ठुकराया।
मिलता नहीं अपनों का साथ उसे,
फिर अकेला ही वो रह जाता है। कोरा काग़ज़ विशेष प्रतियोगिता-25
विषय :- दौलत का नशा

दौलत का नशा होता है जिसको, 
इंसानियत वो सारी भूल जाता है।
इतने रंग बदलता है वो हर पल,
कि अपनों से दूर हो जाता है।