गुलों को उगाओ, अब इन वादियों को महकना होगा..... सूरज के उगते ही, पंछियों को चहकना होगा......!! और चल रहे हो तुम जिधर, उन रास्तो पर मैं नही..... तो फिर लौट आओ, अब तुम्हे मुझ संग भटकना होगा....!!!! अब खत्म हुई ज़िद और मर्जी तुम्हारी..... उन खुशियों को छोड़,आंसुओं में सिसकना होगा....!! अब कहो खुदगर्ज़ या सहो जिल्लतें मेरी..... फूलों के रास्ते भूल, तुम्हे अंगारो से गुजरना होगा.....!!!! अर्पित द्विवेदी. #मेरीतरह #मेरीकहानी