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पवित्र प्रीत की डोर मीत तुमसे ही प्रीत लगाई त

पवित्र प्रीत की डोर 


मीत तुमसे  ही प्रीत लगाई 
तुम्हीं  पवित्र प्रीत की डोर 
जीवन का संगीत तुम्हीं से 
तुमसे ही जुड़ी नेह की डोर

मुझसे जोड़ एक नाता तूने
हिय में प्रेमाग्नि की जागृत 
मेरे खालीपन को तुमने ही 
प्रेम सुधा से किया सिंचित 

मेरे दिलों में बसकर  तुमने
प्रेम की मीठी प्यास जगाई
अंतर्मन में बसा मुझे तुमने
यादों की है वर्तिका जलाई

मेरे एकाकीपन को तूने ही 
बन जीवनसाथी भर डाले
मेरे हाथों को थामकर प्रिय
जीवन में उजास कर डाले

छोटी-छोटी बातों पे रुठना
राज़- ए -दिल कैसे समझें
न उजड़ सके  आशियाना
चाहूं मैं प्रेमबंधन में बंधना 

तेरे संग हो व्यतीत जीवन
तेरे संग निजरिश्ते निभाऊं
न चाहूं प्रेम को आजमाना
समर्पण के भाव रख पाऊं 

निज मन पे तनिक न जोर
तके हर पल बस तेरी ओर
जीवन में बन आते अंकोर 
तुम्हीं  पवित्र प्रीत की डोर 

~~~ राजीव भारती
पटना बिहार (गृह नगर)

©राजीव भारती 
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