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जहां से चला था वहीं पे खड़ा हूं दौड़ा तो बहुत पर न

जहां से चला था वहीं पे खड़ा हूं
दौड़ा तो बहुत पर न आगे बढ़ा हूं
प्रारब्ध पुरुषार्थ का खेल अजीब है
दोनों के बीच में अटका पड़ा हूं
जहां से चला......
कर्मों की गतिशीलता क्यों है बाधित
कहो किसके ताले में अब तक जड़ा हूं 
मृग तृष्णा की माया प्रबल क्यों है
वो अपने पद पर तो मैं क्यों अड़ा हूं 
जहां से चला..…..
मैं पुरस्कृत कहूं या तिरस्कृत कहूं
यक्ष प्रश्न क्यों आज तक मैं बना हूं
उलझन की सुलझन कहां जाके ढूंढू
जीवन में "सूर्य" अपने हरदम लड़ा हूं
जहां से चला...…

©R K Mishra " सूर्य "
  #प्रश्नचिन्ह  Sethi Ji Kanchan Pathak Richa Mishra # musical life ( srivastava ) Rama Goswami