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इन सर्द हवाओं में इन सर्द फिजाओं में । तुम पहाड़ो

इन सर्द हवाओं में 
इन सर्द फिजाओं में ।
तुम पहाड़ों की दूसरी तरफ हो।
ऐसा लगता है जैसे
मानों हवाओ की निगाहें भी तुमसे बिछड़ नम हो।।
क्यों सरहदों के इस पार का मौसम तुम्हे पसंद नही क्या ?
क्यों लकीरों का मिटना मुख्तलिफ नहीं क्या?
आओ ना किसी रोज इन सर्द हवाओं के संग।
कभी उस कुल्हड़ को जकड़ लेना ,
कभी मेरे जिस्म का वो मजबूत हिस्सा बन लेना।
जिसके सहारे में इन सर्द हवाओं से भी लड़ रहा हूं।
दबी आवाज में ही कही मैं चीख चीख कर सिहर रहा हूं।
क्या मेरी आवाज तुम तक नहीं पहुंचती ?
या ये सरहद तुम्हे मेरे पास आने से है रोकती!
या मैं इस दर्द में ये मान लू!
तुम जान बूझ कर मुझसे तो दूर नही बैठी।।
खैर ये मेरे मन का वहम भी हो सकता है ।
या मुझमें बैठा एक झूठा सा अहम भी हो सकता है।।
मुझे उम्मीद है ,
इस सर्द हवाएं के बाद ,
एक रोज सूरज की किरणे आयेगी।
और अपनी रोशनी से 
कही ना कही,
इस सरहद की लकीरों को जरूर मिटाएगी!
और तू जरूर आएगी।।
हा तू जरूर आएगी।।

©Ahsas Alfazo ke
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Amita Tiwari  Jugal Kisओर 
Mishty Jha pramodini mohapatra Mumbaikar_diary