#OpenPoetry पहचान क्या कहे किस से कहे आखिर मौन हम कब तक रहे पाया था जो जिन्दगी में कभी क्या आज उसे छीन्ने दे या फिर इस गुमनाम कहानी को हम गुमनाम ही रहने दे मिली इक हंसी उसे परम्परा नाम दिया बनी जब खिलखिलाहट उसे मर्यादा बना दिया यह दस्तुर ही तो जिसने गंगा -यमुना को नर्मदा बना दिया बनी जब तीव्र धारा उसे सागर में मिला दिया देखता है चातक रात्री में चाँदनी को जैसे खोज रही हुँ मन में विश्वास को ऐसे क्भी सच्चे मिेत्र को तो नही देखा पर उम्मीद है मुझे मिली इक ऐसी ही रूप रेखा वो मेरी सखी ही तो थी जिसे मैऩे आखिरी बार देखा अपनी सी है अपने में जो चंचलता की मुर्ति है वो अब इस कहानी को ह्रदय मे छिपी रहने दो इस गुमनाम कहानी को अब गुमनाम ही रहने दो #OpenPoetry #पहचान #विडम्बना #संघर्ष #ऩारी