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परिंदे हैं हम हमें उड़ने की आदत है खुले आसमानों मे

परिंदे हैं हम हमें उड़ने की आदत है खुले आसमानों में ।

तुम इंसान होकर  के पड़े रहो किराये के मकानों में ।

चुराते रहो गरीबों के तुम हिस्से की रोटियां ।

हम सोते रहेंगे मौज से अपने तिनकों के आशियानों  में ।

      @कमल इलाहाबादी@ #best poem#
परिंदे हैं हम हमें उड़ने की आदत है खुले आसमानों में ।

तुम इंसान होकर  के पड़े रहो किराये के मकानों में ।

चुराते रहो गरीबों के तुम हिस्से की रोटियां ।

हम सोते रहेंगे मौज से अपने तिनकों के आशियानों  में ।

      @कमल इलाहाबादी@ #best poem#