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गुमसुम सी जिन्दगी ख़ामोश सफर करना तय हमें, मंजिलें

गुमसुम सी जिन्दगी ख़ामोश सफर करना तय हमें,
मंजिलें वहीं जाना हो जहाँ पाना वहाँ अपनी डगर।

बेशक खफ़ा जिन्दगी गुमसुम सी सज़ा-ए-दिल्लगी,
बेपनाह सी ज़िन्दगी ख़ामोश हो सफर तय हमारा। 

गुमसुम सी जिन्दगी फिर चल पड़ी मंजिलें जहाँ,
छोड़कर अब देश निकला सफर करता तय वहाँ।

दरिया ए समंदर इश्क का छोड़कर गुमसुम हुआ,
ए-साज़गी राह की हार्दिक गुमराह सी सफर की।

©-hardik mahajan
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