ऐ ज्येष्ठ की बैरी धूप, तू थोड़ा कम तप मेरी माँ अभी खेतों में होगी अब तो उसकी एड़िया भी फ़ट गयी है और झुर्रियां भी दस्तक दे चुकी हैं उसके माथों पर वो कभी शिकायतें नही करती तुम्हारी हृदय उसका, कोमल जो ठहरा मेरी माँ अभी खेतो में होगी