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*गुफ्तगू की आरजूओं* को श्मशान छोड़ आया हूं, कि तेर

*गुफ्तगू की आरजूओं*
को श्मशान छोड़ आया हूं,
कि तेरे जर्रे की हर फिक्र को,
मैं नीलाम कर आया हूं..!!
मत याद आया करो
*हर्ज-ए-रातों* को,
मैं तेरी तमाम *ख्वाहिशों* को 
तेरे ही जनाजे में समेट,
*विसर्जित* कर आया हूं..!!
*गुफ्तगू की आरज़ू.....*
......✍

- हिमांश तुम फिर याद आने लगी हो..
*गुफ्तगू की आरजूओं*
को श्मशान छोड़ आया हूं,
कि तेरे जर्रे की हर फिक्र को,
मैं नीलाम कर आया हूं..!!
मत याद आया करो
*हर्ज-ए-रातों* को,
मैं तेरी तमाम *ख्वाहिशों* को 
तेरे ही जनाजे में समेट,
*विसर्जित* कर आया हूं..!!
*गुफ्तगू की आरज़ू.....*
......✍

- हिमांश तुम फिर याद आने लगी हो..

तुम फिर याद आने लगी हो.. #story