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ना जाने कितनी शालाएँ ना जाने कितने सभागार जाग्रत

ना जाने कितनी शालाएँ 
ना जाने कितने सभागार
जाग्रत वाणी थी तूर्य हुई
हुई कभी तूणीर बाण
हुआ कभी गाण्डीव प्रखर
पाञ्चजन्य का नाद शिखर।
पुलकित मेधा सौरभ भर-भर
फड़कता शौर्य साहसी भुजदल।
केशर सा जगमग भाल भानु
उत्तुंग हिमालय सा सीना
हरियाला हृदय भावभीना
कण्ठ-कण्ठ जयघोष विपुल
स्पंदन-स्पंदन राष्ट्रवन्दन।
गौरवशाली इतिहास प्रवर
प्रेरित होते जनगण सुनकर
नन्हें-नन्हें से बाल नवल
विकसेगा इनमें भारत कल।

(शेष कविता caption में...) ना जाने कितनी शालाएँ 
ना जाने कितने सभागार
जाग्रत वाणी वो तूर्य हुई
हुई कभी तूणीर बाण
हुआ कभी गाण्डीव प्रखर
पाञ्चजन्य का नाद शिखर।
पुलकित मेधा सौरभ भर-भर
फड़कता शौर्य साहसी भुजदल।
ना जाने कितनी शालाएँ 
ना जाने कितने सभागार
जाग्रत वाणी थी तूर्य हुई
हुई कभी तूणीर बाण
हुआ कभी गाण्डीव प्रखर
पाञ्चजन्य का नाद शिखर।
पुलकित मेधा सौरभ भर-भर
फड़कता शौर्य साहसी भुजदल।
केशर सा जगमग भाल भानु
उत्तुंग हिमालय सा सीना
हरियाला हृदय भावभीना
कण्ठ-कण्ठ जयघोष विपुल
स्पंदन-स्पंदन राष्ट्रवन्दन।
गौरवशाली इतिहास प्रवर
प्रेरित होते जनगण सुनकर
नन्हें-नन्हें से बाल नवल
विकसेगा इनमें भारत कल।

(शेष कविता caption में...) ना जाने कितनी शालाएँ 
ना जाने कितने सभागार
जाग्रत वाणी वो तूर्य हुई
हुई कभी तूणीर बाण
हुआ कभी गाण्डीव प्रखर
पाञ्चजन्य का नाद शिखर।
पुलकित मेधा सौरभ भर-भर
फड़कता शौर्य साहसी भुजदल।