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हज़ार ख़्वाहिशों का बोझ लिए चलते हैं, फिर भी हम जिन्

हज़ार ख़्वाहिशों का बोझ लिए चलते हैं, फिर भी हम जिन्दा रहते हैं
मुस्किले आती हैं,  बेवाक
फिर भी हम चलते रहते हैं
एक मंजिल को पाने के लिये
ना जाने कितनी मंजिलो के चौखट 
यूँ ही पार कर जाते हैं
पर मंजिल तक पहुंचने से पहले  
हम क्यूँ मर जाते हैंं।

-Writer Sandeep patel(surya)🖋 मर जाते हैं
हज़ार ख़्वाहिशों का बोझ लिए चलते हैं, फिर भी हम जिन्दा रहते हैं
मुस्किले आती हैं,  बेवाक
फिर भी हम चलते रहते हैं
एक मंजिल को पाने के लिये
ना जाने कितनी मंजिलो के चौखट 
यूँ ही पार कर जाते हैं
पर मंजिल तक पहुंचने से पहले  
हम क्यूँ मर जाते हैंं।

-Writer Sandeep patel(surya)🖋 मर जाते हैं
suryabhai3280

Writer Surya

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