तेरी गलियों में भटकता है एक रात का मुसाफ़िर अनजान बन सब सहता है एक रात का मुसाफ़िर जानता है तेरे सिवा न किसी और को ज़माने में बेक़रार निगाहों से तलाशता है एक रात का मुसाफ़िर अफ़साने हैं उसके दामन में बहुत अतरंगी से तेरी गलियों में गुनगुनाता है एक रात का मुसाफ़िर मासूम सा ता उम्र वादा निभाने को तेरे साथ का हर रात तेरे दर पे बिताता है एक रात का मुसाफ़िर कोई जान पहचान नहीं उसकी, न ज़ात उसकी बस दिवाना तेरा कहलाता है एक रात का मुसाफ़िर। ♥️ मुख्य प्रतियोगिता-1082 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें! 😊 ♥️ दो विजेता होंगे और दोनों विजेताओं की रचनाओं को रोज़ बुके (Rose Bouquet) उपहार स्वरूप दिया जाएगा। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।