बचपन और मिठाई की चोरी बचपन के समय...... त्योहारों में भले ही माँ और बाबूजी भर पेट मिठाई खिला दें लेकिन जब तक चोरी करके नहीं खाया तो क्या मजा आया ? न जाने कितने काठ के अलमारी की महीन जाली तोड़कर मिठाई उड़ा लेता था मैं....न जाने कितनी बार उस महीन जाली से कलाई से रिश्ते हुए खून की परवाह न कर, मिठाई का आनंद लिया था मैंने.....चोरी करने में सफाई इस कदर अपनाता था की लकड़ी के अलमारी की जाली साबुत खोल लेता था लकड़ी की बीटिंग को उकसा कर के....... बस उतना ही जाली हटाया जाता, जितने में कलाई मिठाई के बड़े मर्तबान तक पहुँच सके....उसके बाद काम पूरा हो जाने के बाद फिर से जाली सहेज कर लगाई जाती और लकड़ी की बीटिंग उसके ऊपर ठोंक दी जाती.......आज सोचता हूँ......बचपन में कितना शातिर चोर था मैं ? है न ? ;)