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**आपसी रंजिश** रिश्तों के अब , सरेआम क़त्ल होने ल

**आपसी रंजिश**
रिश्तों के अब ,  सरेआम  क़त्ल होने लगे,
नाते और संबन्ध ,अपनी शक़्ल खोने लगे,

भाई  ही  भाई  के ,  खून    का प्यासा हुआ,
दौलत की ऐसी होड़,रिश्ते भीड़ में खोने लगे,

आपसी रंजिश में करते क़त्ल अपने खून का,
फूल से रिश्तों में अब हम ,शूल क्यों बोने लगे,

जो लील जाए प्रेम को,वो दौलत किस काम की,
दिल के क़रीम  धागों  में,  माया क्यूँ पिरोने लगे,

धन दौलत तो बेवफ़ा के ,कब किसी के साथ गई,
क्यूँ दौलत की ख़ातिर, खून रिश्तों का बहाने लगे।।

-पूनम आत्रेय

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