विवाह:.... जो प्रेम विवाह न था... जहां देह का देह के साथ बंधन हुआ था.. जहा बसेरा था शंका का.. भविष्य को ले असमंजस था... इन्हीं सब को बयां करती कुछ पंक्तियां... कृपया अनुशीर्षक में पढ़े.. अच्छा लगे तो प्रोत्साहित करे ... सजा धजा बैठा दी गई थी वो पावन परिणय सूत्र में बधने के लिए.. संस्कार और समाज की दुहाई दे उसके जज़्बातों को विवाह वेदी पर सदा के लिए ख़ामोश कर दिया गया था.. उसकी अपेक्षाएं उसकी खुशियां उसके उन्मुक्त विचार संस्कारों के नाम पर