शब्दों को सहेज के रखती हैं खो जाती हैं जो समय की आँधी मैं उन यादों को सहेज के रखती हैं कभीं गुलाब के फ़ूलों की कब्रगाह कभी अर्थहीन चित्रों का संग्रह आखिरी बार तुझे दिवाली की सफाई मैं देखा था धूल से सनी हुई, सच बोलू अर्थहीन रेखाएं अब कुछ कुछ समझ आने लगी हैं, ऐसा लगता हैं जैसे कुछ कहना चाहती है मुझसे मेरी यादे, जिसको कभी खींचा था यूँही कोरे पन्नों पे आज फिर से जीना चाहती हैं मुझ मैं मेरी यादे, यह पन्ने जो शब्दों, चित्रों से भरे हैं, कोई तुम्हें डायरी कोई किताब कहता हैं, मैं तुम्हें अपना भूला हुआ मैं कहता हु कुछ बिखरे पन्ने #CalmingNature