बेहद ही लुत्फ़ होगा उस की ज़ुल्फ़ की बंदिश में दुनिया यूँ ही नहीं लगी है उसे पाने की साज़िश में बज़्म से छुपते-छुपाते आँखें देखती तो हैं उसे मगर फसाद के फसाद हो जाएंगे इस ज़रा सी लग़्ज़िश में उसके बदन की खुशबू में कोई तो तिलिस्म होगा ही जो भीगना चाहता है ज़माना खुशबुओं की बारिश में तेरे इश्क़ की कचहरियों में जो दिल हार जाते होंगे फिर गुज़रती होगी उन की सारी उम्र ही गर्दिश में "आकाश" यूँ ही नहीं पढ़ा करती मेरी ग़ज़लों को वो कुछ तो बात होगी ही आखिर मेरी ही निगारिश में gazal..