प्रेम निशान ताज़महल को मानते, सभी प्रेम आधार। कटे सभी वो हाथ जो, बने सृजन आकार।। मूरख मानुष मानते, उसको प्रेम प्रतीक। लहू सना इक मक़बरा, कैसे इश्क़ अतीक? शाहजहाँ का प्रेम तो, झूठ खड़ा बाजार। एक नही मुमताज़ थी, बेगम कई हजार।। उसके पहले बाद फिर, रखे कई सम्बंध। प्रेम नहीं बस वासना, केवल था अनुबंध।। सच्ची मूरत प्रेम की, जपे सभी जो नाम। राम हृदय सीता बसी, सीता में बस राम।। ताज़महल निर्माण में, कटे हुनर के हाथ। सेतु में सहयोग कर, मिला राम का साथ।। प्रेम शिला जल तैरते, सागर सेतु अपार। राम कृपा से गिलहरी, हुई अमर संसार।। माँ सीता के प्रेम में, विह्वल करुण निधान। सेतुबंध रामेश्वरम, अनुपम प्रेम निशान।। कवि पंकज प्रियम (*अतीक-श्रेष्ठ) ©Pankaj Priyam प्रेम प्रतीक #sagarkinare