लगा जो ग्रहण धरती पर मानो विपदा का कोई रंगमंच है, छल रहे एक दूसरे को तनिक मोह में पल में रचते प्रपंच हैं, जा रही सम्पूर्ण संस्कृति,सभ्यता गहरे गह्वर व पतन की ओर, सम्पूर्ण प्रकृति का कालग्रास बना मानव जिसका नही कोई छोर, लाचारी,बेबसी, विक्षुब्धता हाहाकार मच रहा अब देखो चहुँओर, न इंसान की इंसानियत बाक़ी हैं, न मानवता की पोशाक विमल है, जहाँ बहती थी सत्य,अहिंसा की सु सरिता अब वो भी अनिर्मल हैं, #ग्रहण_धरती_पर_काव्य_संगीत 🎑काव्य संगीत प्रतियोगिता 20 में आपका स्वागत करता है। आप 4 पंक्ति में अपनी सराहनीय श्रेष्ठ उत्कृष्ट अनुपम उत्तम रचना लिखें।📃 #काव्य_संगीत #yqdidi #yqbaba 👉मौलिक रचना लिखें, वो भी भारतीय भाषा में, और रचना की प्रत्येक पंक्ति में सिर्फ़ 01-12 शब्दों हीं प्रयोग करें। समय सीमा आज 06:30 PM से कल 6:30 PM तक है 👉 कृपया अपनी रचना का Font ऐसा रखिए, जिससे wallpaper सुंदर रहे, और रचना भी अच्छी दिखे। colb करने के तुरंत बाद ही प्रतियोगिता के comment box मे done ज़रूर comment क