*रामायण कथा का एक अंश* जिससे हमे *सीख* मिलती है *"एहसास"* की... 🔰🔰🔰🔰🔰🔰 *श्री राम, लक्ष्मण एवम् सीता' मैया* चित्रकूट पर्वत की ओर जा रहे थे, राह बहुत *पथरीली और कंटीली* थी ! की यकायक *श्री राम* के चरणों मे *कांटा* चुभ गया ! श्रीराम *रूष्ट या क्रोधित* नहीं हुए, बल्कि हाथ जोड़कर धरती माता से *अनुरोध* करने लगे ! बोले- "माँ, मेरी एक *विनम्र प्रार्थना* है आपसे, क्या आप *स्वीकार* करेंगी ?" *धरती* बोली- "प्रभु प्रार्थना नहीं, आज्ञा दीजिए !" प्रभु बोले, "माँ, मेरी बस यही विनती है कि जब भरत मेरी खोज मे इस पथ से गुज़रे, तो आप *नरम* हो जाना ! कुछ पल के लिए अपने आँचल के ये पत्थर और कांटे छुपा लेना ! मुझे कांटा चुभा सो चुभा, पर मेरे भरत के पाँव मे *आघात* मत करना" श्री राम को यूँ व्यग्र देखकर धरा दंग रह गई ! पूछा- "भगवन, धृष्टता क्षमा हो ! पर क्या भरत आपसे अधिक सुकुमार है ? जब आप इतनी सहजता से सब सहन कर गए, तो क्या कुमार भरत सहन नही कर पाँएगें ? फिर उनको लेकर आपके चित मे ऐसी *व्याकुलता* क्यों ?" *श्री राम* बोले- "नही...नही माते, आप मेरे कहने का अभिप्राय नही समझीं ! भरत को यदि कांटा चुभा, तो वह उसके पाँव को नही, उसके *हृदय* को विदीर्ण कर देगा !" *"हृदय विदीर्ण* !! ऐसा क्यों प्रभु ?", *धरती माँ* जिज्ञासा भरे स्वर में बोलीं ! "अपनी पीड़ा से नहीं माँ, बल्कि यह सोचकर कि...इसी *कंटीली राह* से मेरे भैया राम गुज़रे होंगे और ये *शूल* उनके पगों मे भी चुभे होंगे ! मैया, मेरा भरत कल्पना मे भी मेरी *पीड़ा* सहन नहीं कर सकता, इसलिए उसकी उपस्थिति मे आप *कमल पंखुड़ियों सी कोमल* बन जाना..!!" अर्थात *रिश्ते* अंदरूनी एहसास, आत्मीय अनुभूति के दम पर ही टिकते हैं । जहाँ *गहरी आत्मीयता* नही, वो रिश्ता शायद नही परंतु *दिखावा* हो सकता है । 🔰🔰 इसीलिए कहा गया है कि... *रिश्ते*खून से नहीं, *परिवार* से नही, *मित्रता* से नही, *व्यवहार* से नही, बल्कि... सिर्फ और सिर्फ *आत्मीय "एहसास"* से ही बनते और *निर्वहन* किए जाते हैं। जहाँ *एहसास* ही नहीं, *आत्मीयता* ही नहीं .. वहाँ *अपनापन* कहाँ से आएगा l 🍃🍂🍃🍂🍃 *हम सबके लिए प्रेरणास्पद लघुकथा* 🙏🚩🌷🚩🙏 ©OMG INDIA WORLD #OMGINDIAWORLD *रामायण कथा का एक अंश* जिससे हमे *सीख* मिलती है *"एहसास"* की... 🔰🔰🔰🔰🔰🔰 *श्री राम, लक्ष्मण एवम् सीता' मैया* चित्रकूट पर्वत की ओर जा रहे थे, राह बहुत *पथरीली और कंटीली* थी !