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स्वयं को सम्भालना भी... उतना ही आवश्यक है... जितना

स्वयं को सम्भालना भी...
उतना ही आवश्यक है...
जितना की... 
विडम्बनाओं के दलदल में...
फँसे मन को सम्भालना...
क्योंकि अवश्य ही...
आप किसी तो समझाने में...
सम्पूर्णतः #निपुःण_हैं...
किन्तु क्या आप...
जिसके समक्ष अपनी...
वार्ता को रख रहे...
वो भी आप ही की भाँति...
उस बात को #समझने_के_लिये...
सामर्थ्यवान है...
संभवतया नहीं...
क्योंकि आप सबको...
अपनी ओर से...
समझा तो सकते हो...
परन्तु क्या वो हमें...
उसी प्रकार से समझ पा रहे हैं...
और इसी असमंजसता में...
हम स्थान-स्थान पर...
ठोकर खाते रहते हैं...
केवल इस #एक_प्रयास में...
कि आपके समक्ष जो है...
वो आपको ठीक से समझ पाये...
किन्तु हर कोई हमें #समझ_पाये...
ऐसा कदा भी नहीं हो सकता...
क्योंकि हम जैसे भी हैं...
स्वयं में निपुःण हैं...
जो अधूरा है...
वह है #एकमात्र_ज्ञान ॥

©B.L. Parihar #सेल्फ
स्वयं को सम्भालना भी...
उतना ही आवश्यक है...
जितना की... 
विडम्बनाओं के दलदल में...
फँसे मन को सम्भालना...
क्योंकि अवश्य ही...
आप किसी तो समझाने में...
सम्पूर्णतः #निपुःण_हैं...
किन्तु क्या आप...
जिसके समक्ष अपनी...
वार्ता को रख रहे...
वो भी आप ही की भाँति...
उस बात को #समझने_के_लिये...
सामर्थ्यवान है...
संभवतया नहीं...
क्योंकि आप सबको...
अपनी ओर से...
समझा तो सकते हो...
परन्तु क्या वो हमें...
उसी प्रकार से समझ पा रहे हैं...
और इसी असमंजसता में...
हम स्थान-स्थान पर...
ठोकर खाते रहते हैं...
केवल इस #एक_प्रयास में...
कि आपके समक्ष जो है...
वो आपको ठीक से समझ पाये...
किन्तु हर कोई हमें #समझ_पाये...
ऐसा कदा भी नहीं हो सकता...
क्योंकि हम जैसे भी हैं...
स्वयं में निपुःण हैं...
जो अधूरा है...
वह है #एकमात्र_ज्ञान ॥

©B.L. Parihar #सेल्फ