मैंने अब तक संभाल रखा है स्कूल का पहला बस्ता बेशक बस्ते में किताबें नहीं है, किताबों की जगह हैं बस्ते की अनमोल यादें- बस्ते में आती जाती किताबें, पेंसिल स्केल रबर शार्पनर की यादें। उस बस्ते में हर साल बदलती रही किताबें हर साल स्कूल में बदलते रहे दोस्त भी बदलते रहे अध्यापक भी धीरे-धीरे बदलता गया स्कूल की भी सूरत बस नहीं बदला तो मैं और मेरे बस्ते का साथ जब तक मैंने रो-धो कर नए बस्ते की जिद नहीं की तब तक नहीं मिल पाया दूसरा बस्ता पर वो बस्ता अभी भी है मेरी अलमारी में जब भी आलमारी खुलती है खुल जाता है यादों का पिटारा एक बार खोल कर देख लेता हूं कहीं कुछ बस्ते में ऐसा तो नहीं जो मैंने सालों से देखा ही ना हो कुछ अनमोल जैसे अनमोल है मेरा बस्ता ©Poetic Pandeyz #bag #poeticPandeyz #Dark