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बन नासूर मेरी जुबां से, निकलते रहते हैं जो, ज़हन म

बन नासूर मेरी जुबां से, निकलते रहते हैं जो,
ज़हन में दबे, बीते मेरे लम्हों के फसाने है।,
दिल्लगी, पागलपन, कोई शायरी कहता है इन्हें।
के रुक रुक के देते हैं दर्द, ज़ख्म ये पुराने है।।

दिखा देते हैं सरे आम, मेरे गमों का आलम ये,
ना जाने आज भी क्यूं मनाते हैं, मेरे प्यार का मातम ये।
कराते रहते हैं दर्ज़, मेरे दर्द की अर्ज़ी ये मुझे।
बड़े जिद्दी हैं, अरसों से अपनी बात पर कायम हैं ये।।

बड़ी तकल्लुफ से मेरे मुंह से, निकलते रहते हैं जो,
यह अल्फाज़, कुछ समझते नहीं, या बड़े सयाने हैं।
बदल बदल कर आज़माते हैं, मेरे सब्र का दायरा ये,
कि मनवा पाएं, हम आज भी उनके इश्क में दिवानें हैं।।

हम हर बार यही कहते हैं, कि हमें कुछ याद नहीं,
गुज़र गई वो बातें, वो वादे, वो ज़माने हैं।
शायरी बन, फिर मेरे मुंह से छलक जातें हैं,
क्या कहें एक तो ज़ख्म हैं, ऊपर से बोहोत पुराने हैं।। #shaayavita #zakhm #ज़ख्म #Afsaane #अफसाने #पुराने #टूटा #broken_heart 

#Wood
बन नासूर मेरी जुबां से, निकलते रहते हैं जो,
ज़हन में दबे, बीते मेरे लम्हों के फसाने है।,
दिल्लगी, पागलपन, कोई शायरी कहता है इन्हें।
के रुक रुक के देते हैं दर्द, ज़ख्म ये पुराने है।।

दिखा देते हैं सरे आम, मेरे गमों का आलम ये,
ना जाने आज भी क्यूं मनाते हैं, मेरे प्यार का मातम ये।
कराते रहते हैं दर्ज़, मेरे दर्द की अर्ज़ी ये मुझे।
बड़े जिद्दी हैं, अरसों से अपनी बात पर कायम हैं ये।।

बड़ी तकल्लुफ से मेरे मुंह से, निकलते रहते हैं जो,
यह अल्फाज़, कुछ समझते नहीं, या बड़े सयाने हैं।
बदल बदल कर आज़माते हैं, मेरे सब्र का दायरा ये,
कि मनवा पाएं, हम आज भी उनके इश्क में दिवानें हैं।।

हम हर बार यही कहते हैं, कि हमें कुछ याद नहीं,
गुज़र गई वो बातें, वो वादे, वो ज़माने हैं।
शायरी बन, फिर मेरे मुंह से छलक जातें हैं,
क्या कहें एक तो ज़ख्म हैं, ऊपर से बोहोत पुराने हैं।। #shaayavita #zakhm #ज़ख्म #Afsaane #अफसाने #पुराने #टूटा #broken_heart 

#Wood