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सुना जो आश तुमसे है लगाया, वह फिर कभी खुद को निराश

सुना जो आश तुमसे है लगाया,
वह फिर कभी खुद को निराश न है पाया।।
तेरे घरपर आए बनकर जो भिखारी,
सुना है भर दी तुमने उनकी खुशियों
 से झोली सारी।।
मेरा भोला है भंडारी 
रहता अपने मैं मस्त निराला 
पहने गले साँप की माला 
बहती जटा से गंगा थारा 
पिता है भांग का प्याला 
करता दूर हर निराशा
जो लगता है इनसे आशा...

©I_surbhiladha
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