पाप वाले पापी पाँव, कौवों की कुत्सित काँव, छिपती ये छद्म छाँव, शल्य होली में सहे, ग्रहण लगे जो गुर्ग, सिर से शतुरमुर्ग, दिल के वो द्वेष दुर्ग, पुण्य होली में ढहे, धूर्तता के रणधीर, प्राण की चुभन पीर, नयन बने जो नीर, नित्य होली में बहे, संहारी संवेदनाए, काल होती कामनाएं, द्वार की दुर्भावनाएं, दिव्य होली में दहे। #चारण_गोविन्द #होली पर #कवित #CharanGovindG #govindkesher #CharanGovind #चारण_गोविन्द #Poetry #Holi #Chand #Color