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मुझे मत ज्ञान दो इतना कि, बाबा पीर हो जाऊं। मैं भट

मुझे मत ज्ञान दो इतना कि,
बाबा पीर हो जाऊं।
मैं भटकूं दर-ब-दर कहती कहानी
हाल तेरे की,
मुझे दे दो दुआ मैं कौम की
फ़कीर हो जाऊं।
न तरकश में समाऊं न रहूं
हाथों पे ही निर्भर,
जो शब्दों से फना कर दे
मैं ऐसा तीर हो जाऊं।
करूं हासिल मैं ताजो-तख्त ग़र
इतना यत्न करलूं,
कि पढ़ने और लिखने में ज़रा
 गंभीर हो जाऊं।
मुझे वल्लाह तराशो तुम और 
तिनके से कलम करदो,
कलम हो नाम पर तासीर से
शमशीर हो जाऊं।
अपनी शाख से गिर के 
कभी पत्ते हरे देखे?
जो सबको बाँध के रखले
मैं वो जंज़ीर हो जाऊं।
मैं "दर्शन रत्न रावण" का 
अगर कतरा भी बन पाई,
यकीं मानो मैं मेरी कौम की
तकदीर हो जाऊं।
 है बस आरजू इतनी मेरे दिल की
कि जीते जी,
मैं "बाबा भीम राव" राह की
राहगीर हो जाऊं।
मैं "बाबा भीम राव" राह की
राहगीर हो जाऊं।
✍ पूजा विरला ✍

©Pooja Virla
  #कलम की शहज़ादी
sudhirgarg6890

Pooja Virla

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