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इस ज़िंदगी से हर रोज हम शिकायत करते है। उलझे धागों

इस ज़िंदगी से हर रोज हम शिकायत करते है।
उलझे धागों को सुलझाने की कवायद करते हैं।

लिया था जो कर्ज़ ज़िंदगी से हमनें साँसों का,
उसकी किस्तों को हम हर नफ़स में भरते हैं।

लेती हैं इम्तिहान जब तक मुतमईन होती नहीं,
आग के दरिया से अब हम रोज ही गुजरते है।

देखते हैं ख़्वाहिशों को पानी-पानी होते हुए,
रोज रात को अपनी तन्हाइयों में बिखरते है।

‘वेद’ न जाने इस सफर की मंज़िल क्या हो?
वक़्त के कांटे इस सवाल से बस मुकरते हैं।

 कैसे बनती हैं कविता ज़िंदगी की?

इस ज़िंदगी से हर रोज हम शिकायत करते है।
उलझे धागों को सुलझाने की कवायद करते हैं।

लिया था जो कर्ज़ ज़िंदगी से हमनें साँसों का,
उसकी किस्तों को हम हर नफ़स में भरते हैं।
इस ज़िंदगी से हर रोज हम शिकायत करते है।
उलझे धागों को सुलझाने की कवायद करते हैं।

लिया था जो कर्ज़ ज़िंदगी से हमनें साँसों का,
उसकी किस्तों को हम हर नफ़स में भरते हैं।

लेती हैं इम्तिहान जब तक मुतमईन होती नहीं,
आग के दरिया से अब हम रोज ही गुजरते है।

देखते हैं ख़्वाहिशों को पानी-पानी होते हुए,
रोज रात को अपनी तन्हाइयों में बिखरते है।

‘वेद’ न जाने इस सफर की मंज़िल क्या हो?
वक़्त के कांटे इस सवाल से बस मुकरते हैं।

 कैसे बनती हैं कविता ज़िंदगी की?

इस ज़िंदगी से हर रोज हम शिकायत करते है।
उलझे धागों को सुलझाने की कवायद करते हैं।

लिया था जो कर्ज़ ज़िंदगी से हमनें साँसों का,
उसकी किस्तों को हम हर नफ़स में भरते हैं।
akankshagupta7952

Vedantika

New Creator

कैसे बनती हैं कविता ज़िंदगी की? इस ज़िंदगी से हर रोज हम शिकायत करते है। उलझे धागों को सुलझाने की कवायद करते हैं। लिया था जो कर्ज़ ज़िंदगी से हमनें साँसों का, उसकी किस्तों को हम हर नफ़स में भरते हैं।