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खुद को तराशने में टूट गये माँझी के हाथों पतवार छूट

खुद को तराशने में टूट गये
माँझी के हाथों पतवार छूट गये
कभी अपनों के चेहरे पर 
मुस्कान नज़र नहीं आई।

हौसलों के पंख टूटते चले गये।
सबको इक दिन जाना है 
सबका नया ठिकाना है।

कोशिशें बेकार हो रही 
क्यों हरपल बिखरने पर
चुभन हो रही ।
काश कोई समझा दे
बीती बातें भूला दें। मंथन
खुद को तराशने में टूट गये
माँझी के हाथों पतवार छूट गये
कभी अपनों के चेहरे पर 
मुस्कान नज़र नहीं आई।

हौसलों के पंख टूटते चले गये।
सबको इक दिन जाना है 
सबका नया ठिकाना है।

कोशिशें बेकार हो रही 
क्यों हरपल बिखरने पर
चुभन हो रही ।
काश कोई समझा दे
बीती बातें भूला दें। मंथन