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कभी हीर-रांझा,कभी लैला-मजनू कभी शीरी-फरहाद कभी र

 
कभी हीर-रांझा,कभी लैला-मजनू
कभी शीरी-फरहाद कभी रोमियो-जूलियट 
न जाने मेरे कितने नाम है मेरे 
मैंने बेपनाह इश्क में ताज महल बनवा दिए
और खुदगर्जी में कितने सर कलम करवा दिए
इश्क ने न जाने कितने पत्थर दिल पिधला दिए 
और कितनों को पत्थर दिल बना दिया
इश्क ने हंसते चेहरों को वक्त से पहले रुला दिया
और कभी दो बिछड़े दिलों को मिला भी दिया
इश्क इबादत भी है इश्क कयामत भी है
सजदे में फिर भी इसके सबका सर झुका है

©Pushpa Rai...
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