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भीष्म प्रार्थना हे मधुसूदन कैसे इस विधवंश का मैं

भीष्म प्रार्थना


हे मधुसूदन कैसे इस विधवंश का मैं विश का पान करुँ
क्या विधवाओं के कृन्दन सुन मुक्तिपथ पर प्रस्थान करुँ
हे धर्म दिवाकर यह विनाश कैसे निज मस्तक स्वीकार करूँ
क्या भारतवंश की कीर्ति कलंकित होने पर भी अभिमान करुँ.....!
हे कृपासिंधु द्वय चक्षु दिव्य देखो तो जरा बतलाओ मुझे 
मै राष्ट्र धर्म से डिगा नहीं अपराध मेरा बतलाओ मुझे
मै रहा निरंतर सत्य पथिक तपोनिष्ठ और सहनशील
जीवन का सारा सार और दुख का आधार बताओ मुझे...........!!
मेरे ज्ञान चक्षु हैँ खुले नहीं गीता एक बार सुनाओ मुझे
जीवन के सारे पुण्य पाप एक एक अपराध गिनाओ मुझे
विद्ध शरीर शिथिल बणों पे शयन न अब आराम करूँ 
मेरे मन का मोह मरे तो....मै भी जग से निर्वाण करूँ...........!!!

©कवि अशोक कुमार शर्मा भीष्म प्रार्थना 

#lunar
भीष्म प्रार्थना


हे मधुसूदन कैसे इस विधवंश का मैं विश का पान करुँ
क्या विधवाओं के कृन्दन सुन मुक्तिपथ पर प्रस्थान करुँ
हे धर्म दिवाकर यह विनाश कैसे निज मस्तक स्वीकार करूँ
क्या भारतवंश की कीर्ति कलंकित होने पर भी अभिमान करुँ.....!
हे कृपासिंधु द्वय चक्षु दिव्य देखो तो जरा बतलाओ मुझे 
मै राष्ट्र धर्म से डिगा नहीं अपराध मेरा बतलाओ मुझे
मै रहा निरंतर सत्य पथिक तपोनिष्ठ और सहनशील
जीवन का सारा सार और दुख का आधार बताओ मुझे...........!!
मेरे ज्ञान चक्षु हैँ खुले नहीं गीता एक बार सुनाओ मुझे
जीवन के सारे पुण्य पाप एक एक अपराध गिनाओ मुझे
विद्ध शरीर शिथिल बणों पे शयन न अब आराम करूँ 
मेरे मन का मोह मरे तो....मै भी जग से निर्वाण करूँ...........!!!

©कवि अशोक कुमार शर्मा भीष्म प्रार्थना 

#lunar